Famous Rahim Ke dohe- आज हम अपने बचपन के हिंदी किताबों में रहीम के दोहे जरूर पढ़े होंगे। यहां तक कि हमें बचपन से लेकर 12वीं तक के परीक्षाओं में भी रहीम के दोहे और उनके अर्थ पूछे जाते हैं। लेकिन पुस्तकों में बहुत ही कम इनके दोहे व्याख्या किए हुए मिलते हैं। क्योंकि उन्हें और भी साथ में कई कवियों के दोहे छापने होते हैं। इसीलिए आज हम यहां पर आपके लिए यह 10 या 15 नहीं बल्कि 50 से भी ज्यादा रहीम के दोहे आपको देने वाला हूं। इसके साथ ही आपको दोहे के साथ उसका अर्थ सहित आपको मिलने वाला है। हो सके इन दोहे में से कुछ दोहे का अर्थ आपके परीक्षाओं में भी पूछे जा चुके होंगे। या फिर पूछे जाएंगे। यहां पर आपको Rahim ke dohe के साथ-साथ उनके बारे में परिचय भी आपको देखने को मिलेंगे।
रहीम के दोहे - परिचय (Rahim ke Dohe Introduction)
नाम | रहीम दास |
पूरा नाम | अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना |
पिता | बैरम खां |
माता | सुल्ताना बेगम |
धर्म | चुस्लिम |
जन्म स्थान | लाहौर (अब पाकिस्तान में पड़ता है) |
रचनाएँ | रहीम सतसई, श्रृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी,रहीम रत्नावली एवं बरवै नायिका |
मृत्यु | 1 अक्टूबर 1627 (70 वर्ष) आगरा, उत्तर प्रदेश (भारत मे है) |
Famous Rahim ke Dohe (मशहूर रहीम के दोहे अर्थ सहित)
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं।
ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय॥
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता. यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है.
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की जीवन में कभी ऐसी परिस्थिति आ जाये की जब गुरु और गोविन्द (ईश्वर) एक साथ खड़े मिलें तब पहले किन्हें प्रणाम करना चाहिए। गुरु ने ही गोविन्द से हमारा परिचय कराया है इसलिए गुरु का स्थान गोविन्द से भी ऊँचा है।
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की परोपकारी लोग परहित के लिए ही संपत्ति को संचित करते हैं। जैसे वृक्ष फलों का भक्षण नहीं करते हैं और ना ही सरोवर जल पीते हैं बल्कि इनकी सृजित संपत्ति दूसरों के काम ही आती है।
वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की नदियाँ कभी अपनी बहती धारा का जल ग्रहण नहीं करती स्वयं के लिए। परमार्थ का अर्थ कबीरदास जी ले अनुसार सत्कर्म मानवतापूर्ण भाव आदर्शचरित्र व त्यागसमर्पण से है व साधू वह व्यक्ति जो इन गुणों से परिभूषित हो।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय.
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय||
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की क्षणिक आवेश में आकर प्रेम रुपी नाजुक धागे को कभी नहीं तोड़ना चाहिए। क्योंकि एक बार अगर धागा टूट जाये तो पहले तो जुड़ता नहीं और अगर जुड़ भी जाए तो उसमे गांठ पड़ जाती है।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय।
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं।
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की मनुष्य को सोच-समझ कर व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि जैसे एक बार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकता उसी प्रकार किसी नासमझी से बात के बिगड़ने पर उसे दुबारा बनाना बड़ा मुश्किल होता है।
निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ।
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।।
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की कर्म करना तो अपने हाथ में है, पर उसकी सफलता दैव के हाथ में है। देख लो न चौपड़ के खेल में– पांसा अपने हाथ में है, पर दाँव अपने हाथ में नहीं।
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की जिनमें बड़प्पन होता है, वो अपनी बड़ाई कभी नहीं करते। जैसे हीरा कितना भी अमूल्य क्यों न हो, कभी अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं करता।
जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय।
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की अच्छे लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज की बिसात में प्यादा बहुत अहमियत नहीं रखता लेकिन वही प्यादा जब फरजी बन जाता है तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है।
Rahim Ke Dohe Class 9 - रहीम के दोहे 9वी के लिए
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥ |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की एक बार में कोई एक ही कार्य करना चाहिए। एक से अधिक कार्यों को एक बार में करने से कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं होता। |
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं। ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥ |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की दोहों को उनके आकार से नहीं आंकना चाहिए क्योंकि उनका आकार तो छोटा हो सकता है परंतु उनके अर्थ बड़े ही गहरे और बहुत कुछ कहने में समर्थ होते हैं। |
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।। |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की अपने मन के दुख को हमेशा अपने मन मे ही छिपाकर रखना चाहिए। क्योंकि अगर किसी दूसरे को मन के दुख की बात पता चल जाए तो लोग उसका मजाक बनाते हैं। उसे बांटने वाला कोई नहीं होता और न ही कोई उसे कम कर सकता है। |
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।। |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की कई कामों को एक साथ कभी नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से वह काम अच्छे से नहीं हो पाएंगे और एक साथ बहुत सारे काम करना कठिन है। अगर सिर्फ एक काम के उपर पूरा ध्यान लगाया जाए तो आवश्य ही उस कार्य मे सफलता मिलेगी। |
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय। उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय।। |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की वह कीचड़ का जल महान है जो बहुत से छोटे छोटे जीवों की प्यास बुझाता है। लेकिन वो विशाल समुद्र कहाँ से बड़ा है जहां से हर कोई प्यासा ही लोट जाता है। |
रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय। बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥ |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की जिसके पास अपना धन नहीं है। उसकी विपत्ति में कोई भी सहायता नहीं करता। जैसे यदि तालाब सूख जाता है तो उसे सूर्य जैसे प्रतापी भी नहीं बचा पाता। |
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस। जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥ |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की जब राम जी वनवास में गए तब उस समय चित्रकूट में कुछ समय बिताया था । जब किसी व्यक्ति को आपदा का सामना करना पड़ता है तो वह चित्रकूट ही जाता है । |
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत। ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥ |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की जिस प्रकार हिरण किसी के संगीत से खुश होकर उसके प्रति अपना शरीर तक न्यौछावर कर देता है। ठीक इसी प्रकार कुछ लोग दूसरे के प्रेम में इतना रम जाते हैं कि अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। |
बिगरी बात बन नहीं, लाख करौ किन कोय। रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।। |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की अगर एक बार बात बिगड़ जाए तो लाख कोशिश करने के बाद भी वह सुधरती नहीं। इसलिए हमे हर बात को सोच समझकर करना चाहिए। अगर बात बिगड़ जाए तो वह उस फटे दूध के समान है जिसको चाहे जितना भी मथे या बिलोएँ उसमे से कभी भी मक्खन नहीं निकाल सकता। |
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून। पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।। |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में ‘विनम्रता’ से है। मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। |
Rahim Ke Dohe Class 7 - रहीम के दोहे 7वी के लिए
धरती की सी रीत है, सीत घाम औ मेह । जैसी परे सो सहि रहै, त्यों रहीम यह देह॥ |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की मनुष्य के शरीर की सहनशीलता के बारे में बताया है। वो कहते हैं कि मनुष्य के शरीर की सहनशक्ति बिल्कुल इस धरती के समान ही है। जिस तरह धरती सर्दी, गर्मी, बरसात आदि सभी मौसम झेल लेती है, ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी जीवन के सुख-दुख रूपी हर मौसम को सहन कर लेता है। |
कहि ‘रहीम’ संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति। बिपति-कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत॥ |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की हमारे सगे-संबंधी तो किसी संपत्ति की तरह होते हैं, जो बहुत सारे रीति-रिवाजों के बाद बनते हैं। परंतु जो व्यक्ति मुसीबत में आपकी सहायता कर, आपके काम आए, वही आपका सच्चा मित्र होता है। |
कहि रहीम संपति सगे, बनते बहुत बहु रीत। बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।। |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की कठिन समय में जो मित्र हमारी सहायता करता है, वही हमारा सच्चा मित्र होता है। |
धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह। जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह।। |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की मनुष्य को सुख-दुख समान रूप से सहने की शक्ति रखनी चाहिए, जैसे-धरती सरदी, गरमी व बरसात सभी मौसम समान रूप से सहती है। |
थोथे बाद क्वार के, ज्यों रहीम घहरात। धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात।। |
अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम जी कहना चाह रहे है की कई लोग गरीब होने पर भी दिखावे हेतु अपनी अमीरी की बातें करते रहते हैं, जैसे-आश्विन के महीने में बादल केवल गहराते हैं बरसते नहीं। |
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Faq
रहीम दास जी के सबसे प्रसिद्ध दोहे कौन से हैं?
वैसे तो रहीम दास जी के हर एक दोहा मशहूर और प्रसिद्ध हैं । और हर हर किसी के हिसाब से अलग-अलग दोहा प्रसिद्ध हैं। जिनके लिए जो दोहा पसंद आ जाए। उनके लिए वही दोहा सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं। लेकिन जो रहीम दास जी का सबसे ज्यादा गाए जाने वाले दोहे हैं वह है-
क्या रहीम दास जी भारतीय कवि थे?
रहीम दास जी का जन्म 17 दिसंबर 1556 में लाहौर में अकबर के जमाने में हुआ था। उस समय हमारा भारत अखंड भारत हुआ करता था। जिसमें पहले पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देश नहीं हुआ करते थे। उस समय रहीम दास जी का जन्म हुआ था। उस हिसाब से रहीम दास जी एक भारतीय कवि थे।
रहीम दास जी और अकबर से कैसे संबंध थे?
रहीम दास जी एक मशहूर संस्कृत के कवि थे। इन के पिता बैरम खान थे। जो अकबर के संरक्षक हुआ करते थे।
रहीम दास जी के पांच प्रसिद्ध दोहे हैं-
1. ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
2. गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
3. रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
4. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।
5. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।
Conclusion
रहीम के दोहे को अब लोग एकदम से भूलते जा रहे हैं। लेकिन आज भी हिंदी साहित्य में इन के दोहे काफी ज्यादा मशहूर हैं। जो भी लोग आज हिंदी में रुचि रखते हैं। पूरे कभी ना कभी रहीम के दोहे जरूर पढ़े होंगे। यहां पर हमने आपको 50 से भी ज्यादा रहीम दास जी के दोहे आपको अर्थ सहित दिए हैं। साथ ही हमने कुछ Particular Class में पढ़ा जाने वाला रहीम का दोहा भी आपको दिया है। ताकि आपको पता चले कि अपने क्लास में कौन से रहीम का दोहा पढ़ना है।
तुम मुझे उम्मीद है कि यहां जितने भी Rahim Das ke dohe आपको दिए गए हैं। वह आपको पसंद आया होगा। और अगर आपको आपका मनपसंद दोहा यहां मिला हो। तो कृपया कर इस लेख को शेयर करके सोशल मीडिया के जरिए दूसरे लोगों तक भी यह लेख जरूर पहुंचाएं।