Best Hindi Poems , Hindi Kavita - किसी कवि को अगर कुछ कहना होता है। तो वह हमेशा अपने पंक्ति को ले में बनाकर कविता के रूप में अपने दोस्तों को हमेशा व्याख्या करते हैं। हमारे भारत में रामधारी सिंह दिनकर ,कमला दास, गुलजार, डॉ हरिवंश रॉय बच्चन और महादेवी वर्मा जैसे महान कवि और कवित्री मौजूद थे। जिनका हिंदी कविता आज भी हिंदी के पुस्तकों में पढ़ाई जाती हैं। कुमार विश्वास और अरुण जैमिनी जैसे महान कवि आज भी भारत में मौजूद हैं । जो अपने पंक्तियों से ही सामने वाले को मोह लेते हैं। इन कवियों के हर एक पंक्ति में बहुत सारी मटलबें छुपी हुई होती हैं।
अगर आप किसी हिंदी कविता का व्याख्या समझेंगे। तो उसमें आपको कई सारी बातों की गहराइयां पता चलेगी।
ऐसे ही कई सारे महान कवियों के कविता को आज हम इस लेख में में बताने जा रहे हैं। यहां पर आपको कई प्रकार के Hindi Poem पढ़ने को मिलेगा। इसके साथ ही हम आपको यहां पर कुछ Short Hindi Poem भी देने वाले हैं। जिसका हम व्याख्या भी आपको बताएंगे। कहने का मतलब है कि उस Short Hindi Poem का अर्थ भी आपको यहां बताया जाएगा।
आज के इस लेख में Hindi Poem for kids यानी बच्चो के लिए भी हिंदी कविता दी जाएगी। साथ ही यहाँ आपको Motivational Poem in Hindi और Desh Bhakti Poem In Hindi भी आपके साथ शेयर किया जाएगा। तो बिना किसी देरी के चलिए हम उन मजेदार हिंदी कविताएं को देखते हैं।
Top Hindi Poems On Internet - प्रसिद्ध हिंदी कविता
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है। मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है। आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है, जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है। मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में, बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में। मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो, क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो। जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम। कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। ∼ हरिवंश राय बच्चन |
मर्त्य मानव के विजय का तूर्य हूँ मैं, उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं | अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ, बादलों के शीश पर स्यंदन चलाता हूँ | पर न जाने बात क्या है?..... इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है, सिंह से बाहें मिला कर खेल सकता है, फूल के आगे वही असहाय हो जाता, शक्ति के रहते हुए निरूपाय हो जाता, बिद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से, जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से | चाहिए देवत्व, पर इस आग को धर दूं कहाँ पर? कामनाओं को विसर्जित व्योम में कर दूं कहाँ पर? वह्नी का बेचैन यह रसकोष बोलो कौन लेगा? आग के बदले मुझे संतोष बोलो कौन देगा? मैं तुम्हारे बाणों का बिंधा हुआ खग, वक्ष पर धर शीश मरना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे हाथों का लीला कमल हूँ, प्राण के सर में उतरना चाहता हूँ | इन प्रफुल्लित प्राण पुष्पों में मुझे शाश्वत शरण दो, गंध के इस लोक से बाहर न जाना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे रक्त के कण में समाकर, प्रार्थना के गीत गाना चाहता हूँ | ∼रामधारी सिंह दिनकर |
जीवन में एक सितारा था, माना वह बेहद प्यारा था, वह टूट गया तो टूट गया, अम्बर के आनन को देखो, कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे, जो छूट गए फिर कहाँ मिले, पर बोलो टूटे तारों पर, कब अम्बर शोक मनाता है। जो बीत गई सो बात गई। जीवन में वह था एक कुसुम, थे उसपर नित्य निछावर तुम, वह सूख गया तो सूख गया, मधुवन की छाती को देखो, सूखी इसकी कितनी कलियाँ, मुरझाई कितनी वल्लरियाँ, जो सूख गयीं फिर कहाँ खिलीं, पर बोलो सूखे फूलों पर, कब मधुवन शोर मचाता है। जो बीत गई सो बात गई। जीवन में मधु का प्याला था, तुमने तन मन दे डाला था, वह फूट गया तो फूट गया, मदिरालय का आँगन देखो, कितने प्याले हिल जाते हैं, गिर मिटटी में मिल जाते हैं, जो गिरते हैं कब उठते हैं, पर बोलो फूटे प्यालों पर, कब मदिरालय पछताता है। जो बीत गई सो बात गई। मृदु मिटटी के बने हुए हैं, मधु घट फूटा ही करते हैं, लघु जीवन लेकर आये हैं, प्याले टूटा ही करते हैं, फिर भी मदिरालय के अन्दर, मधु के घट हैं, मधु-प्याले हैं, जो मदिरा के मतवाले हैं, वो मधु लूटा ही करते हैं, वो कच्चा पीने वाला है, जिसकी ममता घट-प्यालों पर, जो सच्चे मधु का जला हुआ, कब रोता है चिल्लाता है। जो बीत गई सो बात गई। (डॉ हरिवंश रॉय बच्चन) |
यूँ ही किताबों में कोई पुराना पन्ना पा गया। क्या कहूं कि दूर ख़ुद से आज कितना आ गया। सदियों की धूल जाने कैसे एक पल में गल गई, और बिसरी यादों में, मैं कितना गहरा समा गया। ख़ुद के ही लिखे ख़तों को सौ सौ दफ़ा पढ़ता रहा, हर बार कोई लफ़्ज नया, कुछ ख़्वाब नया सजता गया। जिक्र कितने मोड़ों का है, कितनी गलियां गुजर गईं, जाने कितने चौराहों पे, मैं सीधा चलता गया। हर रात ने मुझको छला, औ' दिन भी कुछ आगे चला, कुछ बात थी जो मुझमे मैं घटता रहा, मिटता गया। लो आज आँखें नम हुईं, लो आज जख्म हरा हुआ, सालों तलक जो यादों से छुपता रहा, भरता गया। उन बेवजह मुस्कानों से कब से न था कोई वास्ता, अश्कों को लेकर आँखों में आज मैं मुस्का गया। |
इश्क का जिंदगी पे कुछ अहसान देखिये, शादाबगी को और थोड़ा पहचान देखिये। पढ़ पढ़ कर आयतों को क्या सीखेंगे इबादत, कभी किसी काफिर में खुदा जान देखिये। मान लें वादा-खिलाफी वो हँस हँस के बार बार, लेकर उनकी जुबां की कसमे उनका मान देखिये। होठो की थोडी सी मनमानी लहराने दें उनके बदन पर, बेनियाजी बातों में उनकी और थोड़ा ईमान देखिये। दिन भर तरन्नुम-ऐ-तसव्वुर, औ दास्तां-ऐ-मोहब्बत ख्वाब में, सुबह जो उठिए तो होठों पे उनका नाम देखिये। आंखों को चुराने के मौसम हज़ार आयेंगे, निगाहें लगा कर कभी रूह थाम देखिये। |
Best Short Hindi Poem for Kids - बचे के लिए मजेदार हिंदी कविता
चिड़िया को लाख समझाओ, कि पिंजरे के बाहर, धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है। वहाँ हवा में उसको अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी। यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है पर पानी के लिए भटकना है, यहाँ कटोरे में भरा जल गटकना है। बाहर दाने का टोटा है, यहाँ चुग्गा मोटा है। बाहर बहेलिये का डर है, यहाँ निर्द्वंद कंठ स्वर है। फिर भी चिड़िया मुक्ति का गाना गाएगी, पिंजरे से जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी हरसूँ जोर लगाएगी, और पिंजरा टूट जाने या खुल जाने पर, उड़ जायेगी। |
6 साल की छोकरी। भरकर लाई टोकरी।। टोकरी में आम है। नहीं बताती दाम है।। दिखा दिखाकर टोकरी। हमें बुलाती छोकरी।। हमको देती आम है। नहीं बुलाती नाम है।। नाम नहीं अब पूछना। हमें है आम चूसना।। |
तितली उड़ी, उड़ ना सक़ी तितली उड़ी, उड़ ना सक़ी बस पे चढ़ी, सीट ना मिली सीट ना मिली, तो रोने लगी ड्राइवर ने कहा, आजा मेरे पास ड्राइवर ने कहा, आजा मेरे पास तितली बोली, हट बदमाश तितली बोली, हट बदमाश हट बदमाश, मेरा घर है पास हट बदमाश, मेरा घर है पास तितली उड़ी, उड़ ना सक़ी तितली उड़ी, उड़ ना सक़ी रेल में चढ़ी, सीट ना मिली सीट ना मिली, तो रोने लगी बन्दर ने कहा, आजा मेरे पास बन्दर ने कहा, आजा मेरे पास तितली बोली, हट बदमाश तितली बोली, हट बदमाश हट बदमाश, मेरा घर है पास हट बदमाश, मेरा घर है पास तितली उड़ी, उड़ ना सक़ी तितली उड़ी, उड़ ना सक़ी पैदल चली, थकने लगी थकने लगी, तो रोने लगी बन्दर ने कहा, आजा मेरे पास बन्दर ने कहा, आजा मेरे पास तितली बोली, हट बदमाश तितली बोली, हट बदमाश हट बदमाश, मेरा घर है पास हट बदमाश, मेरा घर है पास |
बन्दर मामा पहन पजामा दावत खाने आये। ढीला कुरता, टोपी, जूता पहन बहुत इतराए।। रसगुल्ले पर जी ललचाया, मुँह में रखा गप से। नरम नरम था, गरम गरम था, जीभ जल गई लप से।। बन्दर मामा रोते रोते वापस घर को आए। फेंकीं टोपी, फेंका जूता, रोए और पछताए।। |
Short Hindi Poems With Meaning - जबरदस्त Hindi Kavita
आज रात मेरी यह ख़ामोशी उसे सुना देना
कुछ ना सुने तो आंसू से फैली श्याही दिखा देना
मैं तो घायल हू दी गई उसकी खता से
तुम जुर्म इ-मोहब्बत के कुछ फ़साने सुना देना
आज रात मेरी यह ख़ामोशी उसे सुना देना।
आज रात मेरी यह ख़ामोशी उसे सुना देना
लगी हो अगर उसके भी दिल में आग
तुम मेरे पुराने खतों से भुजा देना
ख़त अब जो ना लिख सके उसे अल्विदा का
तुम इन सिसकियों का गीत सुना देना
आज रात मेरी यह ख़ामोशी उसे सुना देना।
हो तो गयी थी वो सभी बातें जो कहनी थी
पर शायद कोई एक बात रह गयी अधूरी है।
उस शाम तेरी आँखों में पढ़ा तो सब था
पर शायद एक आख़री मुलाकात ज़रूरी हैं।
चाहकर भी ना रोक सकु ना थाम सकु तेरा हाथ
ना जाने कैसी यह तकदीर की मज़बूरी हैं।
तू रहता तो है मेरी इन धरकनो में
ना जाने कैसी फिर यह तुझसे दूरी हैं।
जो कहानी खुद लिखी हो खुदा ने
फिर क्यों वो कहानी नहीं पूरी हैं ?
मोहोब्बत होते हुए भी साथ रहने की
फिर क्यों दी नहीं उसने मंजूरी हैं ?
हाथों की इन लकीरों के आगे कौन करता जी हजूरी हैं
पर तक़दीर हो, यह ज़ालिम दुनिया हो, हो कोई खुदा
मेरी मेहकेंगी साँसे जिसमे तेरे इश्क़ की कस्तूरी हैं।
आज रात फिर वही सन्नाटा है
ना तेरी आवाज़ है
ना तेरी मौजूदगी
तोह फिर क्यों दिल कर रहा तमाशा है?
कह गए थे तुम की ना अब कोई नाता है
ना प्यार बचा है
ना कोई उम्मीद
तोह फिर क्यों दिल कर रहा तमाशा है?
तुम्हारी जुबां पे ना नाम मेरा अब आता है
ना आँखें पुकारती है
ना पुछती हाल मेरा
तोह फिर क्यों दिल कर रहा तमाशा है?
जो तुम आ जाते एक बार !
कितनी करुणा कितने सन्देश,
पथ में बिछ जाते वन-पराग,
गाता प्राणों का तार-तार,
अनुराग भरा उन्माद-राग,
आंसू लेते वे पद पखार,
जो तुम आ जाते एक बार !
हंस उठते पल में आर्द्र नयन,
धुल जाता होठों से विषाद,
छा जाता जीवन में वसंत,
लूट जाता चिर संचित विराग,
आँखें देती सर्वस्व वार,
जो तुम आ जाते एक बार !
By - महादेवी वर्मा
Motivational Poems in Hindi - प्रेरणादायक हिंदी कविता
मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,
आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।
लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,
मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।
छोटे से बडा बनना आसाँ नहीं होता,
जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।
मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,
छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।
कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,क्योंकि
आखिरी ठिकाना मैं अपनी हस्र जानता हूँ।
बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब मुस्कुरा देता हूँ,
आधे दुश्मनो को तो यूँ ही हरा देता हूँ!!
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
Desh Bhakti Poem In Hindi For All - देशभक्ति वाला Hindi Kavita
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आयी फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की क़ीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी, चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ कानपूर के नाना की मुँहबोली बहन 'छबीली' थी, लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी, नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी, बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी, वीर शिवाजी की गाथाएँ उसको याद ज़बानी थीं। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार, देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, नकली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना ख़ूब शिकार, सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार, महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में, ब्याह हुआ रानी बन आयी लक्ष्मीबाई झाँसी में, राजमहल में बजी बधाई ख़ुशियाँ छायीं झाँसी में, सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी झाँसी में, चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छायी, किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लायी, तीर चलानेवाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भायीं, रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी नहीं दया आयी, निःसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया, राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया, फ़ौरन फ़ौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया, लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया, अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ अनुनय विनय नहीं सुनता है, विकट फिरंगी की माया, व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया, डलहौज़ी ने पैर पसारे अब तो पलट गयी काया, राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया, रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात, क़ैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात, उदैपूर, तंजोर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात, जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात, बंगाले, मद्रास आदि की भी तो यही कहानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ रानी रोयीं रनिवासों में बेगम ग़म से थीं बेज़ार उनके गहने-कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार, सरे-आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अख़बार, 'नागपूर के जेवर ले लो' 'लखनऊ के लो नौलख हार', यों परदे की इज़्ज़त पर— देशी के हाथ बिकानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ कुटियों में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान, वीर सैनिकों के मन में था, अपने पुरखों का अभिमान, नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान, बहिन छबीलीनेरण-चंडी का कर दिया प्रकट आह्वान, हुआ यज्ञ प्रारंभ उन्हें तो सोयी ज्योति जगानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगायी थी, यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आयी थी, झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छायी थीं, मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचायी थी, जबलपूर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ इस स्वतंत्रता-महायज्ञ में कई वीरवर आये काम नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम, अहमद शाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम, भारत के इतिहास-गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम, लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो क़ुरबानी थी। बुंदेले हरबालों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ इनकी गाथा छोड़ चलें हम झाँसी के मैदानों में, जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में, लेफ़्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में, रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्व असमानों में, ज़ख्मी होकर वॉकर भागा, उसे अजब हैरानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ रानी बढ़ी कालपी आयी, कर सौ मील निरंतर पार घोड़ा थककर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार, यमुना-तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खायी रानी से हार, विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार, अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आयी थी, अबके जनरल स्मिथ सन्मुख था, उसने मुँह की खायी थी, काना और मंदरा सखियाँ रानी के सँग आयी थीं, युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचायी थी, पर, पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार, किंतु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार, घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार, रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार, घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर-गति पानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ रानी गयी सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी, मिला तेज़ से तेज़, तेज़ की वह सच्ची अधिकारी थी, अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी, हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता नारी थी, दिखा गयी पथ, सिखा गयी हमको जो सीख सिखानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी, यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी, होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी, हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी, तेरा स्मारक तू ही होगी, तू ख़ुद अमिट निशानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ |
रण बीच चौकड़ी भर – भर कर, चेतक बन गया निराला था। राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था। गिरता न कभी चेतक तन पर, राणा प्रताप का कोड़ा था। वह दौड़ रहा अरि-मस्तक पर, या आसमान पर घोड़ा था। जो तनिक हवा से बाग हिली, लेकर सवार उड़ जाता था। राणा की पुतली फिरी नहीं, तब तक चेतक मुड़ जाता था। है यहीं रहा, अब यहां नहीं, वह वहीं रहा था यहां नहीं। थी जगह न कोई जहाँ नहीं किस अरि – मस्तक पर कहाँ नहीं। कौशल दिखलाया चालों में, उड़ गया भयानक भालों में। निर्भीक गया वह ढालों में, सरपट दौड़ा करबालों में। बढ़ते नद सा वह लहर गया, वह गया गया फिर ठहर गया। विकराल वज्रमय बादल सा अरि की सेना पर घहर गया। भाला गिर गया, गिरा निशंग, हय टापों से खन गया अंग। बैरी समाज रह गया दंग, घोड़े का ऐसा देख रंग। |
कविता का भाव कवि श्याम नारायण पाण्डेय हल्दीघाट के युद्ध में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का वर्णन करते हुए कहते हैं-- युद्ध के मैदान में चेतक हवा से भी तेज दौड़ कर दुशमनों के छक्के छुड़ा रहे है। शत्रु परेशान हैं। महाराणा प्रताप के इशारे पर वह तुरंत हवा से बातें करने लगता था। या तो वह शत्रु के मस्तक पर या आकाश पर पैर रखकर दौड़ लगाता था। भाला चले या तलवार, कहीं भी जाने से वह डरता नहीं था। दुशमनों के बीच घुसकर भीड़ को रौंदते हुए आगे बढ़ जाता था। चेतक ऐसा फुर्तीला घोड़ा था जो अभी यहाँ है और देखता-देखता ही वहाँ गया है। युद्ध के दौरान ऐसा कोई स्थान नहीं बचा है जहां चेतक नहीं है। |
मुगलों की सल्तनत पे उसने वार किया था ऐसा कुछ, दंग रह गई आदिलशाही-निजामशाही है ये सच। शिवनेरी पे जन्म हुआ रख दिया शिवाजी नाम है, शिवाई माता के आशीर्वच का ये लाया पैगाम है। युद्धनीति को सीखते दादोजी से धर्म जिजाऊ से , राम-कृष्ण की तरह तुम भी धर्म बचाना कहा उस से। शिवबा ने कर ली प्रतिज्ञा सामने है रायरेश्वर कीलों का है महत्त्व अद्भुत, तोरणा से शुरुआत कर। अफजलखाँ ने बीड़ा उठाया विजापूर दरबार में, बाघ-नखों से चीर दिया है उदर को उस संहार में। जीवा महाला ने मारा सय्यद बंडा को वार से, अफजल की सेना भागे फाजल को लेकर हार से। सिद्दी जौहर ने है घेरा पन्हाला को चारों ओर, बाजी ने बाजी लगाई प्राण के उनकी टूटी डोर। मुरारबाजी शूरवीर थे लड़े पुरंदर रक्षण पे, स्वामिभक्त थे उनके ऐसे उदार अपने जीवन पे। बंदी बन गए आगरा में थे हुई अचानक बीमारी, संतों को उपहार मिठाई भेष बदल के निकली सवारी। लाल महल पे कब्ज़ा करके शाइस्ता है रहने लगा, काटी उसकी उँगलियाँ, जान न गई, खून बहने लगा। भारत में सबसे पहले है नौसेना का किया निर्माण, कीलों और मनुष्यों का किया संगठन, नारी-सम्मान। युद्ध प्रशासन में हैं आगे, जनता को देखें हैं सुखी, नेतोजी को लिया धर्म में, किसी को कभी किया न दुखी। गुरुवर उनके थे संतों में समर्थ और तुकाराम, अष्टप्रधान मंडल की स्थापना, शुरू हुआ राजा का काम। रामराज्य के बाद है ऐसा राज्य हुआ वो पहली बार, स्वराज्य की उसने की स्थापना और शत्रु का किया संहार।
Faq About Poems In Hindi - हिंदी कविता से सम्बंधित सवाल - जवाव
भारत के महान कवि कौन हैं?
वैसे तो भारत में कई सारे महान महान कवियों ने जन्म लिया है। और उनमें से कई सारे ने काफी अच्छे-अच्छे कविताओं को हमारे लिए छोड़ गए।
हिंदी भाषा मैं सबसे प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ कौन से है?
आजतक हमारे बिच कई महँ कवियों ने कई सारे अच्छे अच्छे कविता पेश किये हैं। हर कोई के लिए अलग अलग कविता उनके लिए सर्वश्रेठ है । इसीलिए हम किसी कविता को सबसे अच्छा नहीं बता सकता हूँ। क्युकी आजतक मैंने भी जितने कविता पढ़े है। मेरे लिए वो सभी सर्वश्रेठ कविता रही हैं। मैंने अपने सभी अच्छे अच्छे कविता को ऊपर में उपलब्ध किया है ।
कविता लिखने से पहले किन बातों का ध्यान रखा जाता है?
कविता लिखने से पहले हमें बहुत सारे चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। जिसमें से मुख्यतः है। 1. भाषा 2. शैली 3. बिंब 4. छन्द 5. अलंकार
शैली के अनुसार कविता के कितने भेद होते हैं?
पद्य काव्य, गद्य काव्य और चंपू काव्य यह सभी पांच शैली के अनुसार कविता के भेद हैं।
कविता का इतिहास क्या है?
हिंदी कविता का इतिहास लगभग 800 साल पुराना है। यह लगभग 13 वी शताब्दी से चलती आ रही है। जब उस जमाने में दस्तावेजों को संभालना मुश्किल होता था। तो उन दस्तावेजों को मौखिक रूप से याद करने के लिए ही कविता का उपयोग किया जाता था। पहले के जमाने में ऐतिहासिक ग्रंथों को कविताओं के रूप में लोगों को सुनाया जाता था।
अंतिम शब्द
कविता हमारे भाषा को और भी अच्छे से निखारता है। जितने अच्छे कविताएं को आप पढ़ेंगे। उतनी ही आपको भाषा की पहचान होगी । कविता में भी कई प्रकार के कविता होते हैं। जिसमें अलग-अलग कविताओं में अलग-अलग रस की प्राप्ति होती है। यहां पर हमने आपको कई प्रकार के हिंदी कविताओं का उल्लेख किया है।
यहां हमने Motivational Poem in Hindi से लेकर देश भक्ति Hindi Poem तक हर प्रकार के रसभरी कविता हमने इस लेख में आपको बतलाने का प्रयास किया है। इसके साथ ही हमने कुछ हिंदी कविताओं का व्याख्या करने का भी यहां प्रयास किया है।
अगर आपको यह सभी कविता अच्छा लगा हो। और आपको और भी इसी प्रकार के दूसरे कविता आपको पढ़ने का मन हो। तो आप हमें कमेंट करके बोल सकते हैं। उसके बाद हम आपको इसी तरह के मजेदार भरी हिंदी कविता आपको प्रदान करेंगे। इसके साथ ही हमें आपसे यह विनती है कि कृपया कर इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर के माध्यम से पहुंचाएं। ताकि और भी लोग हिंदी भाषा को बेहतर से समझ पाए। और वह तभी हो सकता है जब वह अच्छे-अच्छे शब्दो की गहराईयों वाली कविताओं को पढ़कर समझेंगे।